राजनीति में महत्वाकाक्षाएं अहम होती हैं। वहां दलीय प्रतिबद्धता, राजनैतिक सुचिता और नैतिकता का कोई स्थान नहीं होता है। राजनीति की यह परिभाषा हैं कि समय के साथ जो पाला बदल अपनी गोट फीट कर ले वहीं बड़ा खिलाड़ी है। मध्यप्रदेश में ज्योंदिरादित्य सिंधिया की तरफ से जो पटकथा लिखी गई है उसके लिए कांग्रेस खद जिम्मेदार है। मध्यप्रदेश की राजनीति में सिंधिया घराने का अपना अस्तित्व है। मालवा क्षेत्र में सिंधिया परिवार का अच्छा प्रभाव हैज्योतिरादित्य सिंधिया ने २०१८ के चुनावों के दौरान अच्छी मेहनत कि थी। उन्हें राज्य का चुनाव प्रभावी भी बनाया गया था। सिंधिया की अच्छी मेहनत के बाद कांग्रेस राज्य में १५ साल बाद लौट पाई। लेकिन आपसी गुटबाजी की वजह से राज्य की कमलनाथ सरकार अनाथ हो गई है। सिंधिया समेत २२ से अधिक विधायकों के त्यागपत्र के बाद मध्यप्रदेश सरकार अल्पमत में आ गई है। जिसकी वजह से सरकार का संकट बढ़ गया है। कमलनाथ सरकार को अब कोई करिश्मा ही बचा सकता है।भाजपा अपने सभी विधायकों को मध्यप्रदेश से बाहर भेज दिया है। इस राजनीतिक उल ट फेर के बाद सारा फैसला विधानसभा अध्यक्ष और राज्यपाल पर आ टिका है। जिसमें विस अध्यक्ष बड़ी जिम्मेदारी निभा सकते हैं। विधायकों के त्यागपत्र को नामंजूर भी कर सकते हैं। वह उन्हें बुलाकर सीधे बात कर सकते हैं या फिर पुनः त्यागपत्र मांग सकते हैं। फिलहाल यह तो संवैधानिक संकट है। लेकिन इस घटना से यह साबित हो गया है कि कांग्रेस में दस जनपथ निर्णायक भूमिका में नहीं है। युवा नेताओं पर गांधी परिवार की कमान ढिली पड़ गई है। कांग्रेस में अब निर्णायक भूमिका वाले नेतृत्व की आवश्यकता है जिसमें इंदिरा गांधी जैसी निर्णय क्षमता हो। जिनके सामने विरोधी कभी उभर नहीं पाए। उनकी राजनैतिक कुशलता और मुखर नेतृत्व पार्टी के आतंरिक विरोधियों और गुटबाजों पर हमेंशा भारी पड़ी। लेकिन सोनिया गांधी और बेटे राहल में यह कार्यशैली नहीं दिखती है। जबकि प्रियंका को सोनिया गांधी जाने क्यों राष्टीय स्तर पर आगे लाना नहीं चाहती हैं। मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार का भविष्य फिलहाल सुरक्षित नहीं है। सिंधिया पूरी राजनैतिक तैयारी और पैंतरेबाजी से बगावत के मैदान में उतरे हैं। जिसकी कीमत कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व और कमलनाथ सरकार को चुकानी पड़ेगीमुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ जिस तरह की साजिश रची उसका खामियाजा पूरी कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा। अब यह सियासी खेल इतना आगे निकल चुका है कि सिंधिया की घर वापसी संभव नहीं है। मुख्यमंत्री कमलनाथ के पास विधानसभा में बहुत सिद्ध करने या फिर त्यागपत्र देने के सिवाय दूसरा विकल्प नहीं है। राज्य का राजनैतिक संकट सुप्रीमकोर्ट भी पहुंच सकता है। सिंधिया की अगुवाई में कांग्रेस मध्यप्रदेश में दोफाड़ हो गई है। ज्यातिरादित्य ने अपना त्यागपत्र कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी को भेज दिया है। सिंधिया से जुड़े २१ विधायकों ने भी अपना इस्तीफा सौंप दिया है। जबकि बदल की कार्रवाई करते हुए पाटी हाईकमान सोनिया गांधी ने उन्हें बाहर का रास्ता भी दिखा दिया है___ मध्यप्रदेश में तेजी से बदले सियासी घटनाक्रम के बीच सिंधिया गृहमंत्री अमितशाह के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल भी चुके हैं। पूरा ब्लूप्रिट तैयार हो चुका है। जल्द ही वह भाजपा में शामिल हो कर अपने अपमान का बदला चुकाएंगे। भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद ज्योतिरादित्य भाजपा से राज्यसभा भेजे जा सकते हैं या मुखमंत्री की कमान सौंपी जा सकती है। फिलहाल मुख्यमंत्री तो नहीं लेकिन उन्हें राज्यसभा भेजकर केंद्रीयमंत्री का तोहफा मिल सकता और राज्य में बनने वाली नई सरकार में उनके करीबियों को मंत्रीपद का तोहफा भी मिलेगा। क्योंकि ज्योतिरादित्य के साथ उनके करीबियों ने भी बलिदान दिया है। निश्चित रुप से कांग्रेस के लिए यह बड़ा झटका है। क्योंकि ग्वालिय, गुना, झांसी और दूसरे जिल में में राजघराने की अच्छी पकड़ है। २०१८ के विधानसभा चुनाव में सिंधिया की मेहनत की वजह से मालवा क्षेत्र से कांग्रेस की कई सीटे निकली। राज्य में कांग्रेस की वापसी में सिंधिया ने अहम भूमिका निभाई थी। राज्य की राजनीति में सिंघिया राज घराने का अहम स्थान है। राहुल गांधी भी नाराज महाराज को नहीं मना पाए। कांग्रेस को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ेगा। पहली कुर्बानी तो उसे सरकार गवांकर चुकानी पड़ेगी। दूसरा नुकसान पाटी का विभाजन हुआ है। तीसरी बात मल वा क्षेत्र में कांग्रेस का भारी नुकसान होगा जहां सिंधिया परिवार की चलती है। वहां की जनता राजपरिवार का बेहद सम्मान करती है। मध्यप्रदेश की राजनैतिक इतिहास में होली का दिन विशेष है। क्योंकि कांग्रेस में विभाजन की आधारशिला उस दिन रखी गई जिस दिन माधवराव सिंधिया की ७५ वी जयंती थी। जिससे यह साबित होता है कि राज्य में विभाजन की पटकथा एक सोची समझीरणनीति थी। गांधी परिवार कांग्रेस में आतंरिक लोकतंत्र नहीं स्थापित कर सका है। युवा नेताओं पर भरोसा जताने के बजाय बुर्जुग पीढ़ी पर अधिक भरोसा जताया गया। जिसका नतीजा रहा कि मध्यप्रदेश के कांग्रेस की वापसी के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजस्थान में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की कमान सौंपने के बजाय सत्ता से दूर रखा गया। जबकि राहुल गांधी युवाओं को नेतृत्व सौंपने की बात करते हैं। लेकिन पार्टी के भीतर खुद युवाओं की उपेक्षा की जाती रही है। जिसकी वजह से कांग्रेस को बड़ी कुर्बानी चुकानी पड़ी है।
सिंधिया की बगावत से बिखर जाएगी काँग्रेस